मराठा साम्राज्य एक ऐसा साम्राज्य था, जिसमे कई वीर योद्धा हुए। जिन्होंने कई बार मुघलो को पछाड़ा और भारत में आगे बढ़ने से रोका। मराठा साम्राज्य का एक नाम जो सबकी जुबान पर आज भी मौजूद हे। वो हे छत्रपति शिवजी महाराज। जिनकी यद्ध निति और वीरता के चलते मराठा साम्राज्य पुरे भारत में प्रस्थापित हुआ था।
शिवाजी महाराज के पास कई योद्धा ऐसे थे, जो अकेले ही किसी भी सेना को ध्वस्त कर सकते थे। छत्रपति शिवजी महाराज के पास एक वीर सैनिक था, जिनका नाम था Baji Prabhu Deshpande (बाजी प्रभु देशपांडे). जिन्होंने पावनखिंड लढाई में अकेले 100 से अधिक मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। बाजी प्रभु देशपांडे के बारे में कहा जाता हे कि कोई भी सैनिक अकेला इनका सामना नहीं कर सकता था। तो चलिए इस लेख में Baji Prabhu Deshpande (बाजी प्रभु देशपांडे) का जीवन परिचय जानते हे।
Baji Prabhu Deshpande Story In Hindi
- पूरा नाम – बाजी प्रभु देशपांडे।
- जन्मतिथि – 1615 ई.
- जन्म स्थान – भोर तालुक पुणे, मावल प्रांत (महाराष्ट्र).
- मृत्यु – 1660 ई.
- पद– शिवाजी महाराज के सरदार.
- युद्ध– आदिल शाह और मुगलों से.
बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) ये वो नाम हे जो मराठा इतिहास में हमेशा अमर रहेगा। बाजी प्रभु का साहस, निडरता, और आत्मविश्वास उनको मराठा इतिहास में उनको एक महान सैनिक बनाता हे। बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) शिवाजी महाराज के सबसे विश्वसनीय सरदारों में से एक थे।
शिवाजी महाराज ने कई मामलों में बाजी प्रभु की वीरता और कुशलता देखि थी। और यही कारन था की शिवाजी महाराज ने बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) को अपनी सेना में शामिल किया था और उच्च पद प्रदान किया।
बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) को वीरता का पर्याय माना जाता था। कहा जाता था की कोई भी अकेला सैनिक इनका सामना करने के लिए तैयार नहीं, और यही बात बाजी प्रभु देशपांडे की असली योग्यता और कौशलता को बयां करती हे।
बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) ने अपनी वीरता का असली परिचय पावनखिंड लढाई में दिया था। बाजी प्रभु देशपांडे ने मुगलों के खिलाफ लड़ाई में 100 से अधिक मुगल सैनिकों का सिर धड़ से अलग किया था।
स्वयं छत्रपति शिवाजी महाराज बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) की प्रशंसा करने से नहीं चूकते थे। शिवाजी महाराज ने बाजी प्रभु देशपांडे को सेना की एक टुकड़ी की जिम्मेदारी सोप दी थी। जो दक्षिण दिशा अर्थात कोल्हापुर के आसपास का क्षेत्र को सुरक्षित करती थी। और यही बात को बाजी प्रभु देशपांडे की वीरता का पर्याय माना जाता है।
बाजी प्रभु देशपांडे ने शिवाजी महाराज के साथ रहकर पुरंदर, कोंडाणा और राजापुर के किले जीतने में भरसक मदद की थी। बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) ने आदिलशाह की छावनी का नाश कर किया था, और स्वराज्य का विस्तार करने में शिवाजी महाराज की सहायता की थी।
Baji Prabhu Deshpande का पन्हाला दुर्ग पराक्रम
बात हे 1660 की। मराठी सेना ने “पन्हाला दुर्ग” के समीप अपनी छावनी बनायीं हुई थी। तब मुगल शासक आदिल शाह को उसके गुप्तचरों ने माहिती दी के मराठी सेना दुर्ग के आसपास ही मौजूद हैं। ये गुप्त माहिती मिलते ही आदिल शाह मराठी सेना पर हमला करने की योजना बना दी।10,000 जेहादी सैनिकों और आदिल शाह पन्हाला दुर्ग फ़तेह करने और मराठी सेना को तबाह करने निकल पड़ा।
आदिल शाह ने गुप्त रास्तों का सहारा लिया था। ताकि मराठी सेना को हमले की भनक भी ना लगे। तब आदिल शाह का सेनापति “सिद्दी जोहर” था। मराठी सेना बिना पूर्वाभास के वही पर मौजूद थे। तभी अचानक 10000 सैनिकों के साथ आदिल शाह और सिद्दी जोहर ने मराठों पर हमला कर दिया। भीषण युद्ध शुरू हो गया।
मराठी सेना को सँभालते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके सरदार बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) भी युद्ध मैदान में कूद पड़े। चारो ओर “हर हर महादेव” के नाद गूंज रहा था। तलवारो की चमक ओर मेघ की गर्जना इस युद्ध को एक भयानक रूप दे रही थी।
मुगलों ने अपनी पूर्व रणनीति के चलते मराठी सेना के राशन-पानी को निशाना बनाया। ओर ये युद्ध कई महीनों तक चला। राशन-पानी के ख़त्म होने के कारन ओर सैनिको की काम संख्या के कारन छत्रपति शिवाजी महाराज को अब यहां से बच निकलना ही एकमात्र उपाय लग रहा था।
अब समय का सम्मान करते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज और प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) ने एक रणनीति बनायीं। ओर आदिलशाह को एक संदेश भेजा कि हम समझौता करने के लिए तैयार हैं। ये संदेशा प्राप्त होते ही आदिलशाह और उसकी सेना का मनोबल काम हो गया। ओर आदिलशाह की सेना ढीली पड़ गई।
मुगल सेना के बदले हुए रुख को देखते ही मराठी सेना पीछे हट गई। मोके की नाजाहत को देखकर शिवाजी महाराज ओर बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) अपनी सेना के साथ वहां से निकल गए।
Baji Prabhu Deshpande की पावनखिंड लड़ाई
पावनखिंड ये वो लड़ाई थी जिसमे 300 मराठों ने 10000 की आदिलशाही सेना धूल चटाई थी। ये महासंग्राम खेला गया था 13 जुलाई 1660 को। ये लड़ाई आधुनिक कोल्हापुर के पास विशालगढ़ के किले के निकट एक पहाड़ी दर्रे पर हुई एक रियरगार्ड वाली लड़ाई थी। इस महासंग्राम में मराठों का नेतृत्व कर रहे थे बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande)। जब की आदिलशाही सेना का नेतृत्व मसूद ने किया था।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों के साथ बीजापुरी क्षेत्र में गहराई से जाना जारी रखा था। और कुछ दिनों में रणनीतिक रूप से स्थित पन्हाला किले पर कब्जा कर लिया। दूसरी और नेताजी पालकर के नेतृत्व में मराठा सेना बीजापुर की ओर बढ़ रही थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए बीजापुर न गवारा साबित हुआ। और उनको पन्हाला किले में पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। बीजापुरी सेना ने शिवाजी महाराज को ढूंढते हुए पन्हाला किले की घेराबंदी कर दी। जिसमे नेताजी पालकर फास चुके थे। बाहरी मदद की संभावना नहीं थी।
तब उच्च जोखिम वाली एक योजना बनायी गयी। जिसके अनुसार शिवाजी, बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande), सैनिकों के एक चुनिंदा दल के साथ, रात के अंत में घेराबंदी से बचने और विशालगढ़ के लिए प्रयास करेंगे। लेकिन इस योजना का महत्वपूर्ण हिस्सा ये था की शिवाजी महाराज की जगह शिव नवी, जो शिवाजी के समान थे, जो मराठा सैनिकों के एक साथी थे वो भागने का प्रयास करेंगे और खुद को पकड़वा लेंगे। और इस तरह से बीजापुरी बलों को धोखा देने की योजना बनायी गयी थी।
Baji Prabhu Deshpande का बलिदान
गुरु पूर्णिमा की रात, छत्रपति शिवाजी महाराज के नेतृत्व में 600 चुनिंदा सैनिको की एक टुकड़ी घेराबंदी से टूट गई। बीजापुरी बलों द्वारा उनका पीछा किया गया। योजना के अनुसार, शिव नवी को बीजापुरी बलों ने पकड़ लिया। हालाँकि, जैसे ही बीजापुरी सेना को एहसास हुआ कि वो असली छत्रपति नहीं हे, तो फिर से सिद्धि जौहर के दामाद सिद्धि मसूद ने मराठा सेना का पीछा किया।
मराठों ने घोडकिंड में अपना अंतिम पड़ाव बनाया था। शिवाजी और 600 मराठा बलों में से आधे विशालगढ़ की ओर बढ़े, जबकि बाजी प्रभु, उनके भाई फूलाजी और शेष लोगों ने बीजापुरी सेना को आगे बढ़ने से रोकने के लिए वही पर रह गए। वो जगह थी पावनखिंड का मैदान। जहा 300 मराठा बलों ने 10000 की सिद्धि मसूद सेना का सामना किया था।
बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) की सेना ने बहादुरी से लड़ते हुए घोडकिंड में सिद्धि मसूद सेना को 18 घंटे से अधिक समय तक रोक कर रखा था। और इसी समय में छत्रपति शिवाजी महाराज विशालगढ़ तक पहोचने में कामयाब हो गए थे।
बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) एक ढाल के रूप में मसूद सेना के सामने खड़े रहे थे। दुश्मन सैनिकों के जानलेवा हमले का सामना कर रहे थे। लेकिन अंत:तहा बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) गंभीर रूप से घायल हो गए थे। फिर भी वो लगातार युद्ध करते रहे। जब शिवाजी महाराज ने सुरक्षित यात्रा का संकेत तीन कैनन वॉली की फायरिंग से दिया, तब बाजी प्रभु देशपांडे ने राहत की सांस ली थी। और अपने प्राण त्यागे थे।
मराठा इतिहास में बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता हे। जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया ताकि उसका राजा सुरक्षित रह सके। बाजी प्रभु देशपांडे की जीवन गाथा को बयांन करने वाली मूवी “हर हर महादेव” कुछ समय में सिनिमाघरो में आने वाली हे। जिसमे हमें बाजी प्रभु देशपांडे (Baji Prabhu Deshpande) संघर्ष गाथा विस्तार में देखने को मिलेगी।
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